दूध का फिर कोई धुला न हुआ
मुझ सा इन्सान काफिला न हुआ
तेरे कूचे से अबकी यूं गुजरा
दरमियां कोई फासला न हुआ
तुमसे वादा था मगर क्या करते
जख्म चाहत का फिर हरा न हुआ
फिर तो यूं भी कि मेरी हालत पे
दुश्मनों का भी हौसला न हुआ
मेरे आने की इत्तिला न हुई
मेरे जाने का कुछ गिला न हुआ
Saturday, November 10, 2007
Friday, November 2, 2007
पग-पग शूल
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
मन वेणी उन्मुक्त हवाओं में खुल जाती है
आकुलता संकल्प विकल्पों में धुल जाती है
अलस क्षणों में सौम्य वेदनाओं के वसन खिंचे
भाव भरे संकेतों की ठिठुरन में गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
नेह स्वाति के आगे विरही ने अंजुरी बांधी है
मन में अघटित घटनाओं की जब चलती आंधी है
काश, उन्मथित होकर नभ से कोई ओस गिरे
आंसू पी जीते चातक की खातिर गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
मन वेणी उन्मुक्त हवाओं में खुल जाती है
आकुलता संकल्प विकल्पों में धुल जाती है
अलस क्षणों में सौम्य वेदनाओं के वसन खिंचे
भाव भरे संकेतों की ठिठुरन में गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
नेह स्वाति के आगे विरही ने अंजुरी बांधी है
मन में अघटित घटनाओं की जब चलती आंधी है
काश, उन्मथित होकर नभ से कोई ओस गिरे
आंसू पी जीते चातक की खातिर गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
Monday, June 18, 2007
जुनूं की हद से
तू ऐसी चीज नहीं है कि भुलाये तुझको
जुनूं की हद से गुजर जाये तो पाये तुझको
तू मेरी हार भी है जीत भी सुलह भी है
न जाने नाम क्या लेकर के बुलाये तुझको
अभी तो नज्म मुझे तुझको वो सुनानी है
जो सोच सोच के रह रहके रुलाये तुझको
जुनूं की हद से गुजर जाये तो पाये तुझको
तू मेरी हार भी है जीत भी सुलह भी है
न जाने नाम क्या लेकर के बुलाये तुझको
अभी तो नज्म मुझे तुझको वो सुनानी है
जो सोच सोच के रह रहके रुलाये तुझको
Saturday, June 16, 2007
किरकिरी
सादगी आंख की किरकिरी हो गयी
छोड़िये, बात ही दूसरी हो गयी
उसकी आहट के आरोह-अवरोह में
चेतना डुबकियों से बरी हो गयी
नन्दलाला की मुरली की इक तान पर
राधा सुनते हैं कि बावरी हो गयी
मेरी कमियां भी अब मुझपे फबने लगीं
वाकई ये तो जादूगरी हो गयी
छोड़िये, बात ही दूसरी हो गयी
उसकी आहट के आरोह-अवरोह में
चेतना डुबकियों से बरी हो गयी
नन्दलाला की मुरली की इक तान पर
राधा सुनते हैं कि बावरी हो गयी
मेरी कमियां भी अब मुझपे फबने लगीं
वाकई ये तो जादूगरी हो गयी
Friday, June 15, 2007
दुनिया
कभी तो ऐसे कि जैसे बरस हुए हों मिले
कभी अजीज दिलो जां से भी लगे दुनिया
बता ऐ जींस्त मुझे तेरा तआरुफ क्या है
न जाने क्या-क्या समझती रही तुझे दुनिया
खुली पलक में मिस्ले-ख्वाब टिमटिमाये बहुत
मुंदे है आंख इधर औ' उधर बुझे दुनिया
सुना तुझे भी मेरी फिक्र बहुत रहती है
तू मुझपे इतनी मेहरबां है किसलिए दुनिया
कभी अजीज दिलो जां से भी लगे दुनिया
बता ऐ जींस्त मुझे तेरा तआरुफ क्या है
न जाने क्या-क्या समझती रही तुझे दुनिया
खुली पलक में मिस्ले-ख्वाब टिमटिमाये बहुत
मुंदे है आंख इधर औ' उधर बुझे दुनिया
सुना तुझे भी मेरी फिक्र बहुत रहती है
तू मुझपे इतनी मेहरबां है किसलिए दुनिया
Thursday, June 14, 2007
इक ऐसी नज्म
वो एक बार मुझे देख मुस्कुराये अगर
फिकर नहीं है मेरा दिल ही डूब जायेगा अगर
भला बताओ मुझे छेड़कर करे भी क्या
गुजर न जायेगा मेरी शाम सिर झुकाये अगर
भटक रही है मेरी रूह किन अंधेरों में
कभी खबर तो मिले लौट कर न आये अगर
इक ऐसी नज्म जिसे लिखके भी सुकूं न मिले
मेरे खयाल में बेहतर है भूल पाये अगर
फिकर नहीं है मेरा दिल ही डूब जायेगा अगर
भला बताओ मुझे छेड़कर करे भी क्या
गुजर न जायेगा मेरी शाम सिर झुकाये अगर
भटक रही है मेरी रूह किन अंधेरों में
कभी खबर तो मिले लौट कर न आये अगर
इक ऐसी नज्म जिसे लिखके भी सुकूं न मिले
मेरे खयाल में बेहतर है भूल पाये अगर
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