वो एक बार मुझे देख मुस्कुराये अगर
फिकर नहीं है मेरा दिल ही डूब जायेगा अगर
भला बताओ मुझे छेड़कर करे भी क्या
गुजर न जायेगा मेरी शाम सिर झुकाये अगर
भटक रही है मेरी रूह किन अंधेरों में
कभी खबर तो मिले लौट कर न आये अगर
इक ऐसी नज्म जिसे लिखके भी सुकूं न मिले
मेरे खयाल में बेहतर है भूल पाये अगर
Thursday, June 14, 2007
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1 comment:
कुमार जी
कविता के साथ-साथ क्षणिकाएँ भी अच्छी लिखते हैं ।
बहु- बहुत बधाई ।
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