Saturday, November 10, 2007

दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ

दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ
मुझ सा इन्‍सान काफिला न हुआ

तेरे कूचे से अबकी यूं गुजरा
द‍रमियां कोई फासला न हुआ

तुमसे वादा था मगर क्‍या करते
जख्‍म चाहत का फिर हरा न हुआ

फिर तो यूं भी कि मेरी हालत पे
दुश्‍मनों का भी हौसला न हुआ

मेरे आने की इत्तिला न हुई
मेरे जाने का कुछ गिला न हुआ

Friday, November 2, 2007

पग-पग शूल

तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
मन वेणी उन्‍मुक्‍त हवाओं में खुल जाती है
आकुलता संकल्‍प विकल्‍पों में धुल जाती है
अलस क्षणों में सौम्‍य वेदनाओं के वसन खिंचे
भाव भरे संकेतों की ठिठुरन में गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
नेह स्‍वाति के आगे विरही ने अंजुरी बांधी है
मन में अघटित घटनाओं की जब चलती आंधी है
काश, उन्‍मथित होकर नभ से कोई ओस गिरे
आंसू पी जीते चातक की खातिर गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे