Friday, November 2, 2007

पग-पग शूल

तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
मन वेणी उन्‍मुक्‍त हवाओं में खुल जाती है
आकुलता संकल्‍प विकल्‍पों में धुल जाती है
अलस क्षणों में सौम्‍य वेदनाओं के वसन खिंचे
भाव भरे संकेतों की ठिठुरन में गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे
नेह स्‍वाति के आगे विरही ने अंजुरी बांधी है
मन में अघटित घटनाओं की जब चलती आंधी है
काश, उन्‍मथित होकर नभ से कोई ओस गिरे
आंसू पी जीते चातक की खातिर गीत लिखे
तेरी सुधियों के उपवन में पग-पग शूल बिछे
शूलों पर सोये सुमनों की खातिर गीत लिखे

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