Saturday, November 10, 2007

दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ

दूध का‍ फिर कोई धुला न हुआ
मुझ सा इन्‍सान काफिला न हुआ

तेरे कूचे से अबकी यूं गुजरा
द‍रमियां कोई फासला न हुआ

तुमसे वादा था मगर क्‍या करते
जख्‍म चाहत का फिर हरा न हुआ

फिर तो यूं भी कि मेरी हालत पे
दुश्‍मनों का भी हौसला न हुआ

मेरे आने की इत्तिला न हुई
मेरे जाने का कुछ गिला न हुआ

1 comment:

class_c mgr said...

waah kya khoob rahi?